सपनो की दुनिया सुहानी होती है,
तथ्य से परे इसकी कहानी होती है,
छंभंगुर ही सही अपनी तो होती है,
दिल में एक छनिक आशा तो संजोती है
बाह्य दुनिया की क्या बात करू?
ऐसी परिस्थिति में कैसे में बढूँ?
रोज अनगिनत ही आखान्छाएं गढ़ु,
पर एक अनजाने भय से अगले ही छन डरु
कभी कितना रमणीय है यहाँ का दृश्य,
तो अगले ही पल कितना प्रतिकूल है परिद्रिस्य,
कैसे कैसे वक्तव्य है मानस पटल पर अंकित,
सत्य की परकाष्ठा को समझो मेरे मिट
सच्चाई से जब होने लगे विकर्षण,
तब होता है सपनो का सृजन,
परदुखकातरता से यु उठने लगे मन,
प्राक्कल्पना से दूर दिखे हर एक जन
मिथ्या रिश्तो की कैसी है परिभाषा,
प्रकितिविश्यक चीजों में भी है एक निराशा,
तादात्मय न हो किसी से यहाँ स्थापित,
अपवाचाकता और उधता में है कैसी जीत?
अपदूषण में लीन है हर इन्सान,
आकृष्ट करे केवल उनका मान,
चिरपोषित है दिल में इतना द्वेष,
टूटे रिश्तो के दूर तक न दिखे अवशेष
उल्लास,मंदोष्ण और उदासीनता,
धूमिल होती दिख रही मानवता,
जीवन चक्र की कैसी है विषमता,
मुश्किल छनो में कौन किसका साथ है देता?
न छितिज़ का है पता,न राह की है खबर,
बदले स्वरुप में दिखते है हर किसी के कलेवर,
सपनो में रमना चाहे हर नर,
विभिन्न दृष्टिकोण का है किन्तु डर
काल्पनिकता लाये खुशियों की सौगात,
कृत्रिमता में है अनमोल बात,
क्या रह जाता है जीवन का आशय,
जब सपने बन जाते है जीने का पर्याय
ऐसे में मानव किसका तुम साथ दोगे?
वास्तविकता की धरातल या सपनो का चरमोत्कर्ष छुवोगे?
ये चुनाव है करना आज उन्हें,
जीवन की गुत्थी को सुलझाना है जिन्हें
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